पूर्वांचल की जय और युवाओं पर भरोसे का नाद !
जौनपुर । शुक्रवार 15 फरवरी,
2013.
वसन्त आगमन पर हर्ष, प्रेम और उल्लास का पर्व
वसन्त पंचमी, ज्ञान के उत्सव का पर्व भी है । आज के ही दिन माँ सरस्वती
के अनुष्ठान का भी विधान है । पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर स्थित वीर बहादुर सिंह
पूर्वांचल विश्वविद्यालय का दीक्षान्त समारोह माँ सरस्वती के इसी पावन पर्व पर ही मनाया
जाता रहा है । विश्वविद्यालय का सोलहवाँ दीक्षान्त समारोह 15 फरवरी 2013 दिन शुक्रवार
को विश्वविद्यालय में सम्पन्न हुया ।
सामान्य रूप से दीक्षान्त समारोह किसी भी विश्वविद्यालय
के लिये एक वार्षिक उत्सव के समान होता है । आज के दीक्षान्त समारोह पर कुछ कहने से
पहले @ sashi kant tripathi के शब्द,
जो मुझे स्मरण
हो रहे हैं, आपसे साझा करना चाहूँगा । कुछ वर्षों पहले एक दीक्षान्त समारोह के बाद विश्वविद्यालय
की समीक्षा बैठक में इन्होने कहा था कि वास्तव में दीक्षा का कभी अंत नहीं होता । विश्वविधायल
के दीक्षान्त समारोहों में भी कुलपति दीक्षा के लिये स्वीकार किये गये अभ्यर्थियों
को यही आदेश और उपदेश देतें हैं कि वे आजीवन स्वयं को इस दीक्षा के योग्य प्रमाणित
करते रहें । त्रिपाठी के अनुसार वेदों आदि में इस संस्कार के लिये समावर्तन संस्कार
आयोजित कराने की व्यवस्था है । इसलिये उनका सुझाव था कि विश्वविद्यालय भी अपने कार्यक्रम
का नाम आगे से ’समावर्तन संस्कार समारोह’ कर ले तो बेहतर होगा । पर
चूंकि मूलत: हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जो कि बनी बनायी लकीरों का अनुसरण करने में
ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है इसलिये त्रिपाठी का यह सुझाव भी उस समीक्षा बैठक से
आगे न बढ़ सका । बताते चलें कि अंग्रेजो द्वारा लादी हुयी गाउन (वह वेषभूषा जो कि इस
समरोह में शोभा यात्रा के लोग धारण करते हैं।) को भी हम तब तक नहीं हटा सके जब तक की
पूर्व राष्ट्रपति प्रो. कलाम ने इसकी शुरुआत नहीं की । और उसके बाद मानों हर तरफ से
अंगेजियत के इस चिन्ह को उखाड़ फेंकने की होड़ सी मच गयी । वैसे मैं अपनी जानकारी बढ़ाने
के लिये मैं यह जरूर जानना चाहूँगा कि इस अवसर पर शोभा यात्रा क्यों निकाली जाती है
और इसकी शुरूआत कैसे हुयी ? गाउन आदि का क्या महत्व है ? अगर आप में से कोई बता सके तो उसका आभारी रहूँगा ।
अब आज के दीक्षान्त समारोह पर आते हैं ।
समारोह विश्वविद्यालय के सर्वेसर्वा कुलाधिपति महोदय
की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ । जिसमें की ख्यातिलब्ध न्यायमूर्ति जे.एस.वर्मा ने मुख्य अथिति के रूप में शिरकत की । हाल ही में
दिल्ली बलात्कार कांड (16 दिसम्बर, 2012) के बाद कानून में संशोधन के
लिये बनी कमेटी के अध्यक्ष की मौजूदगी से, बिना शक विश्वविद्यालय आह्र्लादित
दिखा । मैं यह कहने से बच नहीं पा रहा हूँ कि स्वयं वर्मा साहब भी इस घटना को अपने
जीवन की एक महत्व पूर्ण घटना मानतें हैं । उनके दीक्षान्त
भाषण में भी इस घटना से जुड़े अनुभवों की भरमार रही ।
इस समारोह के सम्बन्ध में विगत कुछ वर्षों में एक परिवर्तन
जो देखने को मिला वह है कि विश्वविद्यलय में अब यह समारोह पहले के मुकाबले कुछ संकुचित
स्तर पर मनाया जाता है । संकुचन के कारण आर्थिक हों या सुरक्षा से जुड़े हो सकते हैं
। पक्के तौर पर कह नहीं सकता । पर हाँ इतना जरूर है कि प्रबन्धन की दृष्टि से यह ज्यादा
सुगम हुया है । सैकड़ों की तादात में पी.एच.ड़ी., परास्नातक, स्नातक आदि के अभ्यर्थियों को दीक्षा एवं उपाधि के लिये
स्वीकार करने के ’आदेशों’ और ’उपदेशों’ बाद दीक्षान्त भाषण हुया ।
जस्टिस वर्मा के इस भाषण को युवाओं पर उनके भरोसे की
अभिव्यक्ति के रूप में देखता हूँ । उनका यह भरोसा हाल ही में प्राप्त उनके अनुभवों
पर आधिरित था । कुछ लोगों के लिये यह एक आंखे खोलने वाला तथ्य हो सकता है, क्योंकि आम तौर पर भारत में युवाओं को कम तरजीह दी जाती है । उन्हे नौसिखिया, कम जानकारी वाला, उदंड आदि जुमलों से नवाज़ा जाता रहा
है । पर बकौल जस्टिस वर्मा उनके लिये 30 दिन के रिकार्ड समय में कानून संशोधन की रिपोर्ट
तैयार करना संभव नहीं होता अगर उन सैकड़ों लड़के - लड़कियों ने उन्हे अपनी बिन मांगी सहायता
न उपलब्ध कराई होती । वे सभी अपने संसाधनों का प्रयोग कर इस कमेटी की मदद में अनवरत
लगे रहे ।
यह एक ऐसा समूह था जिसमें कोई नेता नहीं था । जिसे किसी
नेता ने बुलाया नहीं था । शायद, कोई अपने बगल में खड़े शख्स को जानता
नहीं था पर फिर भी गजब की तारतम्यता थी उनके बीच । उद्देश्यों की तारतम्यता और देश
के लिये विषम मौके पर कुछ कर दिखाने की तारतम्यता । इसी कारण, वर्मा साहब देश की बेहतरी के प्रति आश्वस्त दिखे । क्योंकि अब कमान इन्ही युवाओं
के हाथों में आयेगी ।
आपके भाषण में दिल्ली के आन्दोलन पर भी अपनी राय रखी
गयी । न्यायमूर्ति के शब्दों की आत्मा के साथ अन्याय न हो जाये इसलिये अंग्रजी में
ही कुछ सूत्र वाक्य आपसे साझा करना बेहतर होगा ।
1. Youth coming forward is
an encouraging sign.
2. The pressure of civil
society on the government machinery is expedient from the December 16 incident and the incidents following it.
3. Anger was channalised
to revitalise the democratic institutions and it was different from the one
seen in earleir ones. (Possibly an oblique reference to the Anna / Kejriwal
show where the demand for a particular law making was not taken that seriously
by the governement and eventually did not yield the desired results)
4. Civil Society palys a
role to eradicate gender bias.
इन सूत्र वक्यों के साथ - साथ वे नव दीक्षीत छात्र -
छात्राओं को हिदायत भी दे गये कि आज जो शपथ उन लोगों ने ली हैं वो मात्र एक रस्म अदायगी
न बन के रह जाये ।
इसके बाद विश्वविद्यालय के कुलाधिपति महाहिम श्री बी.
एल. जोशी जी का अध्यक्षीय उद्धबोधन हुया । आपने जस्टिस वर्मा की बातों को उद्वेलित
करने वाला बताया । कार्यक्रम के दौरान छात्र - छात्राओं को स्वर्ण पदक प्रदान करते
समय उन्होनें देश के युवाओं से जो बातें की उसे साझा करते हुये उन्होनें कहा कि मेडल
प्राप्त करने वाला प्रत्येक छात्र उन्हे भविष्य के प्रति आशावान दिखा । उनका छात्रों
के लिये जो सन्देश रहा उसमें लोकतांत्रिक मूल्यों की अलख जगाये रखना भी शामिल था ।
प्रधानमन्त्री और राष्ट्र्पति ने जो बात हाल ही में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी
सत्र में कहीं थी, उसकी टीस, महामहिम के भाषण में यहाँ भी झलकी । यह कि विश्व के नामचीन 200 विश्वविद्यालयों
में भारत का एक भी नहीं है । शोध का स्तर गिरा है और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर टक्कर नहीं
ले सकता है । यह बात आज इस कार्यक्रम में स्वीकृत की गयीं 387 पी.एच.डी. डिग्रियों
पर भी लागू होती है । पर सब कुछ के बाद वे भी भविष्य के प्रति आशावान दिखे कि शायद
आगामी किसी दीक्षान्त समारोह में ऐसा सम्भव हो, जो की वस्तुत: उनके इस विश्वविद्यालय
के उन तीन दीक्षान्त समारोहों में सम्भव नहीं हो सका जिसमें उन्होनें सिरकत की ।
इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय का कुलगीत
गाया गया जिसके बोल कुछ इस प्रकार से हैं :
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल
विश्वविद्यालय का हरितांचल
जय - जय - जय पूरब की आत्मा
जय - जय - जय पूर्वांचल ॥ ....
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