सोना मत, पत्थर बन जाओगे
वर्ष 2012 के तीसरी भोर में एक अफवाह फैली की सोना मत, वरना पत्थर बन जाओगे । 03 जनवरी 2012 को प्रात: 04 बजकर 12 मिनट मेरे ममेरे भाई दीपक का फोन आया देख पहले तो मन आशंकाओं से भर गया क्योकिं यह फोन करने का कोई सामान्य समय नहीं था । जब उसने पूछा कि मैं सो रहा था या जग रहा था, तो एक बारगी माथा ठनका कि जरूर कोई खास बात होगी जिसे कहने से पहले वह कोई औपचारिकता निभा रहा था । पर जब अगले ही क्षण वह बोला कि सोना मत, वरना पत्थर बन जाओगे तो मन ही मन मैं हंसा और उससे पूछा कि इस बात की प्रमाणिकता क्या है । तो जवाब वही आया जो अपेक्षित था - कि मैनें नहीं देखा पर कोई बता रहा था ।
उसे क्या जवाब दूँ ? यह सोचने में जरा भी वक्त नहीं लगा । पर उसकी आस्थावान भावनाएं आहत न हो, यह सोचकर चुप रहा । वो फोन जब तक नहीं खत्म हुआ जब तक दीपक ने मुझसे इस बात का आश्वासन नहीं ले लिया कि मैं अन्य लोगों और रिश्तेदारों को भी फोन करके इस बात की सूचना जरूर दे दूंगा । मन में उभरते अनेकों प्रकार के विचारों की मीमांसा करते हुये मैंने नीचे जाकर अस्पताल के कर्मचारियों को मां के ड्रिप खत्म होने की सूचना देने पहुँचा तो पाया कि वहाँ भी सभी लोग इसी चर्चा में डुबे थे ।
नाईट ड्यूटी वाली डाक्टर अपनी माँ को घर के बाहर हल्दी और गेरू के पाँच थापे (हाथ के पंजे के निशान) लगाने के लिये कह रही थीं । जिससे की शायद इस प्रकार की दैवीय आपदा से बचा जा सकता होगा । वैसे यह मजेदार तथ्य है कि इस प्रकार के थापे पहले भी भारतीय जन-मानस से उसके घरों के बाहर किसी चुड़ैल या भूतनी से बचाव के लिये कई - कई बार लगवाये जा चुके हैं । सात घर छोड़ कर बाकियों का विनाश करने वाली चुड़ैल के बारे में भी यही मान्यता है कि वह विनाश करने के बाद उस घर के बाहर थापे लगा के जाती है ताकि दुबारा उस घर का विनाश करने का प्रयास करने में अपना समय ना बर्बाद करे । एक अन्य मान्यता यह भी है एक प्रकार के थापे लगा कर उस चुड़ैल को इस बात का सन्देश दिया जाता है कि थापे लगा घर उन सात घरों में से है जिसका उसे विनाश नहीं करना है । न जाने इतने भारी पैमाने पर विनाश करने वाली चुड़ैल का गणित कितना कमजोर रहा होगा कि पूरे - पूरे शहर में, हर घर के बाहर लगे थापे को देखकर भी उसके सात घरों की संख्या पूरी नहीं होती । या फिर कितने घरों का विनाश वो कर चुकी थी उसका कोई लेखा - जोखा वह नहीं रखती रही होगी ।
और बाकी स्टाफ अपने - अपने हिसाब से इस अफवाह की मीमांसा करते हुये मिला । पता चला कि प्रात: 2 के आस - पास इस अफवाह को पर लगे और लोग मुहल्लों में सड़को पर निकल कर सबको जगाते घूम रहे हैं । कुछ ही पलों बाद आस - पास की बस्तियों से हो हल्ला सुनाई देने लगा ।
तुरन्त ही यह विचार आया कि क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रस्तावित हैं इसलिये अपनी संगठनात्मक शक्ति जांचने के लिये यह काम ‘एक राजनैतिक दल‘ विशेष का किया धरा होगा
। मन में अनेकों प्रकार की भावानाएं लिये हुये प्रमुखता से यह सोचते हुये झपकी आ ही गयी कि बेकार में नींद खराब कर दी । कहने कि जरूरत नहीं है कि दीपक को दिया हुआ आश्वासन मैंने नहीं पूरा किया ।
प्रातः 7:15 के आसपास अस्पताल में रात की ड्यूटी का स्टाफ अपने घर जाने की तैयारी में था । तब रात की ड्यूटी वाली डाक्टर के हमारे कमरे में आने से मेरी आंख खुली । शुक्र है कि सोने के बावजूद भी मैं अब तक पत्थर नहीं बना था । डाक्टर से मेरा उससे पहला सवाल था कि क्या कोई पत्थर बना ? जवाब जैसे पहले से मालूम था । कोई भी नहीं । वह भी मेरे सवाल के निहीतार्थ समझ कर मुस्कुरा कर रह गयीं पर उन्होनें मेरे सूचना कोष में इतना इजाफ़ा जरूर किया कि चण्डीगढ़ और केरला तक से इस अफवाह के फैलने की पुष्टि वो अपने परिचितों से बात करके कर चुकी थीं । बात तो आयी - गयी सी हो गयी पर विचारशील मन तेज रफ्तार से विचारों के सागर में गोते लगाता रहा ।
दिन के 10 बजे अभी - अभी आसनसोल में बैठी एक पूर्व सहपाठी नीना मिश्रा से फेसबुक पर इस अफवाह के बारे में पूछा तो उसने ऐसी कोई जानकारी होने से इन्कार लिया । हिमाचल प्रदेश में रह रहे मेरे पूर्व सहकर्मी राहुल सिंह से फोन पर पूछने पर उन्होने ने भी ऐसी किसी जानकारी होने से इन्कार किया और साथ में यह जुमला भी दिया कि वो अपना यू.पी. है वहाँ कुछ भी हो सकता है क्योंकि यहाँ के लोग असम्भव को सम्भव बनाने में विश्वास रखतें हैं । जौनपुर में एक पत्रकार मित्र आशीष श्रीवास्तव से पूछा तो उन्होनें इस कहानी में एक नया आयाम जोड़ दिया कि जौनपुर में रात भर भूकम्प आने की अफवाह रही । साथ ही यह भी कहा कि भूकम्प आने की सूचना कम से कम भारत में तो पहले से नहीं मिलती - इसलिये यह भी अफवाह ही रही ।
इस प्रकरण से यह तो साफ होता है कि हमारी व्यवस्था में कोई तो ऐसा सूत्र है जो इस प्रकार की सूचनाओं को बड़ी ही तेजी से लोगों के बीच सम्प्रेषित करता है । इतना तेज कि रात के गहरे पहर में भी कुछ घण्टों में ही सारे देश में कोई बात फैलाई जा सकती है । वह भी रात के उस समय जब अधिकांश लोग सो रहे हों । लोग टेलीविजन भी नहीं देख रहे हों कि ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर माइण्ड ब्रेकिंग मसाला परोसा जा रहा हो । कुछ वर्षों पूर्व जब गणेश जी ने देश के हर मन्दिर में दूध पीया था तो दिन का उजियारा था । पर उस समय मोबाईल क्रान्ति नहीं आयी थी । सूचना तब भी फैली थी, पर हर मन्दिर हर शिवालय से दूध-धारा बहने में पूरा दिन लग गया था । ऐसा ही कुछ घटित हुआ जब देश में नमक का उत्पाद बन्द होने की अफवाह फैली तो तुरन्त ही सारी आबादी नमक के दस - बीस पैकेट तक खरीद कर घर में जमा करने लगी । नकम उत्पादन तो बन्द नहीं हुया पर उस दिन 2 रू. किलो वाला नमक 40 रू. किलो तक बिक गया ।
मेरे मन में जो सवाल बार - बार उठता है वह यह है कि आखिर ऐसी अफवाहें फैलाता कौन है और क्यों ? उत्तर प्रदेश में चुनावी माहोल के कारण इस काम में किसी राजनैतिक दल विशेष का हाथ होने की सम्भावना समाप्त होती है क्योंकि जिन राज्यों में चुनाव नहीं हो रहे हैं वहाँ भी इस अफवाह का असर दिखा । मेरी शक की अन्य सुईयाँ किसी सामाजिक संगठन, जोकि धर्म और आस्था के प्रचार प्रसार में लगा हो, कि ओर भी जाती हैं । एक ऐसे देश में जहाँ धार्मिक और अंधविश्वासी मतों एवं मान्यताओं के बीच अन्तर धूमिल होता हो वहाँ जनता को आस्था ने नाम पर बेवकूफ बनाना कोई बड़ा काम नहीं । व्यापारिक हितों के लिये भी यह काम लिया जा सकता है । दूघ और नमक बनाने वालों के बाद अब फोन / मोबाईल कम्पनियों को भी एस.एम.एस. और प्रीमियम काल की तर्ज पर कमाई का एक नया ज़रिया मिल गया । अफवाह फैलाओ और खजाना भरो ।
मेरे रडार पर सरकारी तन्त्र भी है । जिसमें सिविल डिफेन्स और आई.बी. सरीखे विभागों को ऐसी घटनाओं से इस बात को जाँचने में मदद मिल सकती है कि जनता के बीच सूचनाये किस प्रकार प्रभावी ढ़ंग से फैलाई जाये । कम से कम समय में लोगों के बीच सूचनायें कैसे प्रसारित की जायें । लोगों के इस गुप्त और अति शक्तिशाली तन्त्र का उपयोग देश की सुरक्षा व्यवस्था को जरूरत के समय और प्रभावी ढ़ंग से प्रयोग किया जा सकता है । इसकी क्षमता जांचने के लिये भी ऐसी अफवाहों को एक प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है ।
Farewell to the Blogger in Draft Blog (and hello +Blogger!)
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The Blogger team recently posted that The Blogger In Draft Blog Is Being
Retired. But don't worry if (like me) you favour using all the shiny new
stuff in ...
12 years ago
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