2011-12-25

दी डर्टी पिक्चर का एक रिव्यू

वर्ष 2011 के अन्तिम सप्ताह में जब मल्टिप्लेक्स में इस फिल्म के इक्का - दुक्का शो ही चल रहे हों और वो भी 20-25 फीसदी दर्शकों के साथ तो कहने की जरूरत नहीं है कि मैं इस फिल्म को देखने वाले दर्शकों के अन्तिम कुछ जत्थों में शामिल था । और शायद ऐसा कुछ नहीं बचा होगा जो अब तक इस फिल्म के बारे न लिखा गया होगा, न कहा गया होगा और पढ़ा - सुना न गया होगा । मीडिया में इस फिल्म को लेकर जो हल्ला और शोर गढा़ गया था वो अबतक पूरी तरह शान्त हो चुका है । शायद अब कोई इस फिल्म की बात भी नहीं कर रहा हो होगा पर फिर भी मेरा मन इसे लिखे बिना नहीं मान रहा है । और यह सोच कर कि हर एक रिव्यू जरूरी होता है, लिख ही डाला ।

"जो तुम आज कर रही हो उसे बगावत कहतें हैं और कुछ सालों बाद लोग इसे आजा़दी कहेगें " मेरी नजर में नायला के किरदार का यह डायलाग पूरी फिल्म का मूल मन्त्र है । 80 के दशक में एक सिल्क सेक्स सेम्बल बन जाती है और इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में फिल्म-जगत की हर नायिका सिल्क को गौढ़ करती नजर आती है । विद्या बालान के कम कपड़ो और मादक अदाओं पर दर्शक सीटी तो उस मल्टीप्लेक्स में भी बजा रहे थे जिसमें मैने यह फिल्म देखी पर बहुधा अब यह यह कोई चर्चा का विषय नहीं रहा ।

चमक - दमक वाली दुनिया जिसे आम लोग स्टारडम कहते हैं और तकनीकी जानकार सिल्वर स्क्रीन - के पीछे के सच के तमाम पहलू यदा - कदा सामने आते रहतें हैं । उन्ही में से एक यह भी रहा कि "जिन कानों को तालियों की आवाज सुनने की आदत हो चुकी हो, उन्हे गाली भी न सुनाई दे " तो क्या हाल होगा ? अगर मुझे सही याद है तो फैशन फिल्म में कंगना रानाउत को भी स्टारडम से उतरते इसी प्रकार की हालत में दिखाया गया है । छोटे शहरों से चमक - दमक की ओर, शो-स्टापर बनने की चाहत लिये तो ’फैशन’ फिल्म में प्रियंका चोपड़ा को चन्दीगढ़ से बम्बई तक का सफर तय करते दिखाया गया था । जब सितारा बुलन्द रहा तो दुनिया जूती पर और जब सितारा ढ़ला तो यूँ लगने लगे की सारी दुनिया हमें ही जूती पर बिठाना चाहती है । गलत - सही के इस द्वन्द के बीच घर लौटने की चाहत को न सिल्क रोक पाती है और न बुरे दिनों में फैशन में सुपर माडल बनी प्रियंका । 80 के दशक में जहाँ सिल्क की माँ उसके मुंह पर दरवाजा मारती है तो इक्कीसवीं सदी में राज बब्बर अपनी बेटी (प्रियंका) के बुरे दिनों में साथ खड़े नजर आये थे ।

अपनी इम्पार्टेन्स कम होना इस दुनिया के लोगों को जरा भी बरदाश्त नहीं है । इस दुनिया के लोगों के लिये Love me or hate me, but don't you dare ignore me का कथन सटीक बैठता है । अगर हालात इतने खराब हो तो कि "दुश्मनों को भी" उससे "कोई शिकायत न हो " तो शायद आत्महत्या ही एक मात्र विकल्प बचता है ।

पर सब कुछ के बाद भी सबसे बड़ा सच यह है कि - बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया । सब कुछ पैसे के लिये किया जाता है । जब तक कैश बाक्स में खनक बढ़ रही है तो सब कुछ जायज है । और सबसे ऊपर यह सच कि कैश रजिस्टर कुछ चुनिन्दा लोगों का हक है । चाहे वो फैशन फिल्म में दिखाई गयी कपड़ों की कम्पनी जो माडलिंग के ठेके नयी - नयी लड़कियों को देती थी जिसकी खुद की निगाह अपने मुनाफे पर थी । या डर्टी पिक्चर के कीड़ादास का बाक्स आफिस की नब्ज पर पकड़ ।

मेरी नजर में सोचने वाली बात यह है 80 के दशक की सिल्क, इक्कीसवीं सदी की फैशन फिल्म की नायिका प्रियंका चोपड़ा और हर दिन फिल्म नगरी में स्टूडियोज के बाहर ’25 से 50’ की संख्या में पहुँचती लड़कियों की संख्या यह सिद्ध करती है कि इस नगरी की लोगों को चमक से अपनी ओर खींचने की ताकत में कोई कमी नहीं आयी है । और यह कैसे मान लिया जाये कि यहाँ पहुँचने वाले सभी लोग इसके अच्छे - बुरे किस्सों से अछूते हैं । फिर भी अपने को इस ओर भागने से नहीं रोक पाते । ऐसे में कास्टिंग काउच और इसी प्रकार के अन्य आरोपों की सच्चाई पर चर्चा करना बेमानी है । अर्थशास्त्र का सीधा डिमाण्ड - सप्लाई का मामला है । अगर तू वो न करने के लिये तैयार है तो - कई और लाइन में खड़े हैं । सप्लाई ज्यादा और डिमाण्ड कम । बाकी सब बाजार के हवाले से स्वत: होता है । या कुछ लोग करने की हैसियत में आ जाते हैं । फैशन में कपड़े की कम्पनी का मालिक या दि डर्टी पिक्चर में सुपर स्टार सूर्या ।

नायला के शब्दों में अगर वो सिल्क के बारे में नहीं लिखती तो ज्यादा बुरा होता बनस्पत इसके कि वो सिल्क के बारे में बुरी बातें लिख रही थी इस बात को स्थापित करता था कि मीडिया प्रचार क साधन है । नायला का चरित्र कार्पोरेट फिल्म में हाई - सोसाईटी में दखल रखने वाली एक ऐसी ही जर्नालिस्ट के काफी करीब दिखा । और यह तथ्य की मीडिया से रिश्तें बनाना सभी के लिये जरूरी है खुलकर सामने आया। मीडिया के कुछ चुनिन्दा लोगों को हर दुनिया के अन्दरखाने तक पहुचँ होती है जो उन्हे बड़ी खबरें दिलवता है और बेस्ट जर्नलिस्ट का अवार्ड भी ।

क्या हुया जो सिल्क उचाईयों से गिर रही थी - शकीला चढ़ भी तो रही थी ।

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