राग दराबारी के शिवपाल गंज में स्वागत
नवम्बर 19, 2011.
"वेलकम टू शिवपाल गंज ।"
इन शब्दों के साथ शेष नाथ सिंह ने ’राग दरबारीय’ विधा में मेरा ’शिवपाल गंज’ में अभिवादन और स्वागत किया, जब मैंने उन्हे बताया कि मैनें अभी - अभी दिवंगत श्रीलाल शुक्ला की कालजयी कृति राग दराबारी का रस स्वादन शुरू करा है । यद्यपि उन्हे इस बात का शक भी था कि कहीं मेरे पास इस उपन्यास की उनकी प्रति तो नहीं है । पर उनकी इस शंका का मैंने तत्काल पुरजोर खंडन किया और यह बताने में कतई नहीं चूका कि इस प्रति को मैंने बाकायदा अपनी गाड़ी कमाई से जौनपुर में अपने मित्र और जिले के प्रमुख पुस्तक विक्रेता विकास पाठक कि दुकान ’किताब घर’ से खरीदा है ।
शेषनाथ को इसकी सूचना देना इसलिये प्रासंगिक है क्योंकि 1999 में एम.काम. की पढा़ई के दौरान उनसे हुये परिचय के बाद से आज तक के लगभग 13 वर्षों के सफर में उन्होनें अनगिनत बार इस कृति का हवाला किसी-न-किसी मौके पर किसी-न-किसी रूप में इसमें वर्णित किसी घटनाक्रम को उद्धरित करते हुये दिया है । हाल ही में अपनी बहन की शादी के अगले दिन जब मेहमान शादी स्थल से वापस चलने के लिये तैयार हो रहे थे तो भी वो इसी किताब से कुछ लाइनों का बखान करने से नहीं चूके थे । तो दिल के किसी कोने में यह ईच्छा और कौतहूल तो था ही कि मौका मिले तो इस कृति को भी पढ़ू और समझूं क्यों शेषनाथ गाहे - बगाहे इसके किसी कथाक्रम का उदाहरण देते रहतें हैं । इसके साथ ही, हाल ही में हुये श्रीलाल शुक्ला के देहान्त नें भी मेरी इस कृति के प्रति मेरी उत्सुकता बढ़ा दी थी । इस पृष्ठभूमि में जैसे ही यह किताब मुझे विकास की दुकान पर दिखी तो अब और रुकने का कोई औचित्य नहीं था । और फिर इसकी सूचना शेषनाथ को इन शब्दों में की "आपके द्वारा बहुधा संदर्भित और रिकमेन्डेड किताब पढ़ रहा हूँ ।" बसों और ट्रेनों के सफर के दौरान समय काटने के लिये पड़ी, पढ़ने की इस आदत की वजह से अब तक बहुत सी कृतियों से दो-चार हो चुका हूँ ।
राग दरबारी के अभी कुछ ही पृष्ठ पढ़े हैं पर इतना समझ में आ रहा है कि 60 दशक में जो लिखा गया था वो बहुधा आज भी प्रासंगिक है । न पूरा सही, तो कुछ काट छांटकर ही, मगर यह आज भी भारत की राज व्यवस्था, समाजिक ढ़ाचे और राजनीतिक परिदृश्य पर एक सटीक और चुटीला ग्रंथ है ।
मैं समझता हुँ कि जैसे गुरुचरन दास कि किताब ’इन्डिया अनबाऊण्ड’ भारत की आजादी के बाद के आर्थिक परिदृश्य के एक लम्बे इतिहास से सरल, चुटीले और पाठक सुलभ अन्दाज में परिचय कराती हुयी उदारीकरण के मुहाने तक ला के छोड़ती है, वैसे ही राग दरबारी भारत को एक समाजिक सागर के रूप में देखती है । एक ऐसा देश और समाज, जो कि हाल ही में अंग्रेजों के लम्बे शासन के बाद आजाद हुया था । जिसमें विषमताओं के रंग है, भावनाओं का पुट है और यथार्थ की कटुता है । जिसे कि शुक्ला ने शायद एक नौकरशाह के चश्में से देखा और एक आम आदमी की कलम से लिखा । और हाँ, देखने और लिखने की इस पूरी प्रकिया पर उनकी खुद की अवधी पृष्ठभूमि की खुशबु मुझे पहले पन्ने से ही आना शुरू हो गयी थी ।
इस किताब का आगाज़ जिन ट्रकों के बारे में यह कहते हुये हुआ है कि इनका जन्म ही सड़कों के साथ बलत्कार करने के लिये हुआ है । अभी - अभी बरसात का मौसम खत्म हुआ है ओर बहुधा सड़कें अपनी हालत पर रोती हुयी मिल जायेंगी । सरकारी तंत्र ने इस हालत के लिये कमीशन खोरी के डामर और हराम खोरी के निरीक्षण से बनी हुयी कम गुणवत्ता वाली संड़कों को नहीं पर ट्रकों की ओवरलोडिंग को माना । जबकी ओवरलोडिंग के बावजूद जो दबाच कोई ट्रक सड़कों पर बनाता होगा उससे कहीं ज्यादा दबाव उससे बड़े - बड़े ट्रक और माल ढ़ोने के अन्य वाहन सड़कों पर बना रहें हैं ।
2011-11-21
वेलकम टू शिवपाल गंज !
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स्वर्णिम यादें !
दिनांक 19 नवम्बर 2011 : प्रात: 00 : 30 बजे :
अभी - अभी विश्वविद्यालय के डिपार्टमेन्ट से लौटा हूँ । चलते चलते फेसबुक पर नजर पड़ी तो देखा कि हमारे हाई - स्कूल (1992) के जमाने की क्लास की एक ग्रुप फोटोग्राफ जयश्री शुरेश ने आनलाईन होस्ट कर दी है । और उस फोटो को देख कर उस जमाने के बहुत से संगी - साथियों ने अपने - अपने उदगार निकालना शुरू कर दिया है । मेरी नजर शायद उस फोटो पर बहुत देर से पड़ी । मुझसे पहले ही काफी टीका - टिपण्णी हो चुकी है ।
ज्यादातर लोग तो उन दिनों को याद करके भाव - विभोर हो रहें हैं । कुछ लोग उस तस्वीर में दिख रहे लोगों को पहचाननें में व्यस्त हैं, तो कुछ उन लोगों का अता - पता पूछ रहें हैं जो कि उस तस्वीर में तो हैं पर फेसबुक पर नहीं । समय से साथ यादें भी धुंधली पड़ चुकी हैं - इसका जीवान्त उदाहरण रहा कि फोटो में दिख रहे सभी लोगों के नाम शायद कोई भी सही - सही नहीं बता पाया । कुछ नाम गलत लिखे थे, तो कुछ नामों पर जिसको जितना याद आया अपनी यादों के धुंधले साये से निकाल कर फेसबुक की दीवार पर उकेरता चला गया ।
इस स्वर्णिम अवसर पर मैने भी अपना स्मरण कौशल दिखाया और उस समय की अपनी सहपाठी स्वाति कपूर के नाम को दुरुस्त करने की टिपण्णी कर दी । हिमांशू भट्ट ने इसे स्वाति जैन बताया था । इसके अतिरिक्त अमरजीत सिंह, पी. सुदीप, विवेक वैध, आदि - जिनके की नाम अभी तक स्पष्ट रूप से नहीं बताये गये थे - को चिन्हित कर के सबकी जानकारी के लिये छोड़ दिया ।
अविनीश श्रीवास्तव चाहतें हैं कि किसी व्यक्ति को अन्य शेक्शन के सहपाठियों के भी ऐसे ही ग्रुप फोटो होस्ट करने चाहिये । वहीं सौम्या पाठक को ठीक से स्मरण नहीं की वो फोटो खिचनें वाले दिन कहाँ थी । वो पक्के तौर पर तो नहीं कह सकती पर उसने संभावना जतायी है कि शयाद वह उस दिन स्कूल न आयी हो ।
फोटो में मैं नहीं हँ । मुझे भी याद नहीं की मैं उस दिन कहाँ था । शायद मैं भी स्कूल न गया हूँ । पर उस दिन क्या मालूम था कि एक दिन इस स्वर्णिम याद को यों देखने और पुन: जीने का मौका मिलेगा ।
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2011-11-15
Inspirational and lively quotes from Revolution 2020
This is not created by me. But, I did want to do this while I was reading this book - REVOLUTION 20 - 20 by Chatan Bhagat. But, I am glad someone did it.
The source of this work is at
http://ekendraonline.com/leisure/inspirational-lively-quotes-from-revolution-2020-chetan-bhagat-2370.html
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Here are inspirational and lively quotes from Revolution 2020, mostly love and ambition centric; and pointed-towards-girl’s nature and human behavior. Page no. follows these awesome, quotations from Chetan Bhagat’s Revolution 2020.
Love makes us do stupid things. pp 5
If I live, I want to enjoy. If I die, who cares?
Successful people don’t have friends.
Even expensive whiskies can be harmful. pp 7
Why couldn’t god make six-packs a default standard in all males? Did we have to store fat in silliest places? pp 25
Sometimes, life plays cruel jokes on you. pp 30
Telling your parents you’ve failed at something is harder than the actual failure. pp 31
One stupid exam, half a dozen mistakes in multiple-choice problems changes your life forever.
When people achieve something, they become self-obsessed. pp 40
Why do girls send confusing signals? She had rebuffed me on the boat the other day. Yet she comes to shop with me for boring clothes hangers and doesn’t let me pay. She calls me three times a day to check if I’ve had my meals. Does she care for me or not? pp44
Since my favorite hobby was wasting time, I spent the afternoon comparing the brochures. pp 56
When girls are hiding something, they start speaking like boys and use expressions like ‘cool’. pp 67
If someone stalls you on a chat, every minute seems like an hour.
Girls have no idea what effect their wavering has on boys. pp 73
A girl’s ‘I’m Fine’, especially with capital F, is like an ‘iceberg ahead’ sign for a ship.
I hate her. But I miss her. pp 79
Losers don’t get things easily. Marks, ranks, girls – nothing is easy for us.
A few jabs at the heart are better than a complete nervous breakdown. pp 88
Losers, even if they do not have a brain, have a heart. pp 102
When you screw up someone’s life, the least you can do is leave the person alone. pp 105
Varanasi is probably the only city on earth where Death is a tourist attraction. pp 109
Stupid people go to college. Smart people own them. pp 120
Why did we grow up? Things were so much simpler earlier. pp 122
Politicians can multitask better than most people. pp 123
Making lots of money is not passion, is an ambition instead.
It is amazing to be in love. A feeling even better than passion. pp 150
It is amazing how the brain will connect one thought to another until it gets to where it wants to be. pp 159
Practical enough to leave the people who do the funny stuff alone. pp 170
Old friends are old friends. Boyfriends and all are fine, but they never understand you like old friends can. pp 173
That’s what human relationships are about – selective sharing and hiding of information to the point of crazy confusion. pp 184
Girls can handle simultaneous multi-topic conversations with ease.
Girls don’t like reality that much. Or practical questions. pp 198
Sometimes your heart can lead you to a dead end.
How can god give girls so much power? How can they turn productive, busy and ambitious men into a wilting mass of uselessness. pp 204
Power is not an apple that falls from a tree into your lap. Power has to be snatched from people who already have it. Che Guevera, pp 205
Money, status and power – however evil people may say these are – get you respect in life. pp 207
Girls can come up with the simplest of messages that have the most complex meanings. pp 208
How can girls pretend that nothing happened? Do they erase stuff from their brains, brush it aside, or are they just good actors? pp 210
Girls cannot be understood. pp 225
In every relationship, there is a weaker person and there is a stronger person. The weaker person is the one who needs the other person more. pp 226
Power-driven societies resemble animal societies. ‘”Might is right” is the rule of the jungle and applies to beasts. And beasts do not progress, humans so. pp 244
Sometimes losers get ahead in life. Never forget that.
Politicians, businessman and educationist – power, money and respect – perfect combination. pp 256
Maybe that innocent, good part of us never dies – we just trample upon it for a while. pp 267
Sometimes life isn’t about what you want to do, but what you ought to do. pp 268
Life may not offer you the same chance twice. pp 269
Posted by Sachin Agarwal at 20:44 0 comments
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