2014-01-01
सम्भावनाओं को तराशने और अपेक्षाओं को सम्भालने का समय !
वर्ष 2014 के आगमन पर सभी अपने तरीके से इसका इस्तकबाल
कर रहे हैं । मेरे पास भी है कुछ उद्गगार । जिन्हे यहाँ साझा कर रहा हूँ ।
नव वर्ष बधाईयों का सिलसिला जब उद्विग्न हो गया तो मन
के किसी कोने में यह बात कचोटी कि कुछ खट्टी
मीठी यादों के साथ 2013 तो विदा हो गया पर इन बधाईयों के बीच नये वर्ष में जीवन
कैसा होगा ? 2013 के
शुरू में ही @ tarun subhash का एक एस.एम.एस. आया था कि दो हजार जो कि उनका है वो उन्हे लौटा दिया जाये क्योंकि
तब यह सार्वजनिक हो गया था कि दो हजार तेरा (2013) है । इसी मांग को तरूण के अलावा
कई और मित्रों ने एस.एम.एस. के माध्यम से मेरे समक्ष रखा और वर्ष के बीच में बाकायदा
याद भी दिलाया कि मुझे अब तो उनका 2000 वापस दे देना चाहिये । पर मैं भी ढ़ीठ बना रहा
किसी को वापस नहीं किया - उनका 2000
|
एस.एम.एस. पर ठिठोली की बात से आगे अगर असल जीवन के भीतर
झांके तो भी स्थिति कुछ खासी अलग नहीं है । हमसे जुड़े सभी की हमसे कुछ अपेक्षाएं हैं
। जिसे वह अलग - अलग रूप में कभी प्रकट करता है
। तो कभी अप्रकट रूप में भी रहकर अपेक्षाएं स्पन्दित होती रहती हैं । अपने जीवन को ही रिवाईण्ड करें जरा । बचपन में कभी
स्कूल में, कभी बोर्ड
परीक्षा में पास होने की अपेक्षा । कभी विश्वविद्यालय में प्रवेश की अपेक्षा, फिर जीविकोपार्जन के साधन की अपेक्षा
और फिर ......... जिन्दगी की उठा-पटक में इन अपेक्षाओं के बीच समय व्यतीत होता रहा
।
अपेक्षाओं के साथ ही आशाओं का भी जुड़ाव है । आने वाला
समय आज से बेहतर होगा - यह हर मनुष्य की सतत प्रस्फुटित होने वाली आशाओं मे से एक है
। हमारे प्रयासों और चेष्टाओं का एक बड़ा भाग आशा अनुरूप प्राप्ति में लगा रहता है ।
यूँ अगर एक बड़े कौनवस पर देखें तो जीवन आशाओं और अपेक्षाओं का तानाबाना मात्र ही लगता
है ।
अब चाहे यह आशा, गीता के सर्व ज्ञात "कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है
..... फल की ईच्छा मत करो" वाली शिक्षा
के कतई विपरीत ही क्यों न हो । पर मनुष्य तो मनुष्य है । वह हर बात को अपने हिसाब से
अपने नफे - नुकसान के तराजू में तौल कर परिभाषित करने में माहिर हो चुका है ।
एक मनुष्य होने के नाते और जैसा कि आजकल फैशन में है कि
एक ’आम आदमी’ होने के नाते मेरा भी प्रयास होता है
कि इन आशाओं और अपेक्षाओं के मैदान में खेलते रहने के लिये नई संभावनाओं की खोज करूँ
। यह मानव जीवन की थाती है कि उसके लिये सम्भावनाएं अनंत हैं ।
बस जरूरत होती है पूरे इमानदार प्रयास की । वर्ष 2014
के लिये और जीवन के हर मौके पर जो बात जीवान्त दीखती है वो दुश्यंत कुमार के इस कथन
में नीहित है कि "कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों
" या बचपन में सुना-पढ़ा यह दोहा कि " जिन खोजा तिन पाईयाँ " । पर इसके
आगे "गहरे पानी पैठ(ने)" की शर्त
भी जुड़ी है । साथ ही यह भी कबीर ने बता दिया कि जो ’बापुरे बूढ़न डरें’ उन्हे ’किनारे बैठ’ कर ही संतोष करना पड़ता है ।
तो फिर क्या ? नई आशाओं और नईं अपेक्षाओं को सम्भालने के लिये नयी सम्भावनाएं
खोजने का समय है । जो कि सतत है । हम सबके लिये वर्ष 2014 नयी सम्भानाओं के द्वार खोले
। और हम सभी अपने से अपनों की अपेक्षाओं पर खरे उतरें ।
इस वैचारिक उधेड़ - बुन के बीच ईष्ट जनों मित्रों एवं सम्बन्धियों
के बधाई सन्देशों का भी आभार व्यक्त करना चहता हूँ ।
इति शुभम - शुभ !
स्वागत 2014 !
Comment (1)

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Shimla also come in wonderfull enjoyable place .After reaching their from where would our eye see we will see only big mountains on which a layer of snow our protected them.The views of these mountain look perfect in the early shunshine of sun it’s will completely fill us wth great joy.Several tour and travels agencies oraganised day and night pack to these hill station .
Comments by IntenseDebate
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Posted by Sachin Agarwal at 02:38
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