आज दीपावली के बाद का दिन है । आज गोवर्धन पूजा का दिन है । लखनऊ की स्थानीय भाषा में इसे जमघट भी कहते हैं । यह दिन आम तौर पर पड़ेवा के नाम से भी प्रचलित है । पुराने लखनऊ के लोग आज के दिन को कनकउआ (पतंग) के पेंच लड़ा कर मनाने के लिये पूरे साल भर इंतजार करते हैं । यह मूलत: छुट्टी का दिन है । साल भर काम की रेलम - पेल के बाद राहत के कुछ पल स्वत: ही जीवन में प्रवेश करते दिखतें हैं । और वो भी इतने बेहतर तरीके से और इतने मुफीद मौके पर । वाह !
व्यापारी परिवारों में इस दिन कारोबार बंद रहता है । या एक प्रकार से वर्जित होता है । हर वर्ष की भांति आज सुबह - सवेरे ही माँ ने हिदायत दे डाली की आज "लिखा - पढ़ी का कोई काम न करना ।" ऐसा शायद इसलिये की साल - भर कलम चलाने के बाद एक दिन चित्रगुप्त जी भगवान ने अपने लिये भी छुट्टी मांगी होगी । कायस्थ बन्धु आज के दिन कलम - दवात की पूजा करतें हैं
पर मेरी उलझन यह है कि कागज-कलम का प्रयोग तो हो नहीं रहा । पर जब मैं यह पोस्ट फेसबुक पर लिख रहा हूँ तो क्या इस नियम / वर्जना का उल्लघंन होगा ? क्या माँ और चित्रगुप्त जी महाराज नाराज तो नहीं हो जायेंगें ?
कॊई मदद करेगा क्या ?
2011-10-27
मेरी उलझन !
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Shimla also come in wonderfull enjoyable place .After reaching their from where would our eye see we will see only big mountains on which a layer of snow our protected them.The views of these mountain look perfect in the early shunshine of sun it’s will completely fill us wth great joy.Several tour and travels agencies oraganised day and night pack to these hill station .
Comments by IntenseDebate
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Posted by Sachin Agarwal at 17:32
Labels: उलझन, चित्रगुप्त, दिवाली, दीपावली
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