2011-10-27

भारती - वालमार्ट, लखनऊ

भारती - वालमार्ट, लखनऊ

लखनऊ में अभी हाल ही में खुले भारती - वालमार्ट के मार्डन होलसेल स्टोर में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । व्यवस्था के लिहाज से पूरी तरह चाक - चौबन्द यह स्टोर सुशान्त गोल्फ सिटी के मुहाने पर सुल्तानपुर रोड के बहुत ही पास स्थापित किया गया है । पहले मैं इसकी पृष्टभूमि पर प्रकाश डालता हूँ । इस स्टोर (या व्यापार व्यवस्था सम्बोधन बेहतर रहेगा) को साकार रूप देने में कई वर्ष लग गये । सरकारों के भीतर खाने से दो-चार होने के बाद इसके आने के पहले से ही छोटे व्यापारियों ने काफी हो-हल्ला मचाया और आशंका जाहिर की यह उनके व्यापार के लिये घातक होगा । यहाँ तक की उनके व्यापारों के नामों - निशान तक मिट सकते हैं । व्यापार-मण्डलों, संघों ने धरने - प्रदर्शन आदि करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी । आज उसी स्टोर के साकार एवं साक्षात दर्शन कर मैं अभिभूत एवं चकित हूँ, कि ऐसी कोई व्यवस्था पहले क्यों नहीं आयी ? भारतीय व्यापार, व्यापारियों एवं व्यापार के तौर तरीकों में यह स्टोर शायद आमूल-चूल परिवर्तन ला सकने की छमता रखता है

सबसे पहले तो मैं बताना चाहूँगा कि साईज (क्षेत्रफल ) के मामले में यह किसी भी बड़े माल से कम नहीं है । इतने बड़े साईज में होलसेल की एक दुकान वास्तव में आकर्षण का विषय रही । खैर, अब मुद्दे की बात यह की वालमार्ट की देशी-विदेशी उपभोक्ता बाजारों की समझ और भारती की भारतीय जन-मानस पर पकड़ का सीधा अवतरण यहाँ देखने को मिलेगा । नाम है - BEST PRICE.

नाम से क्या लेना, मेरा काम देखो यारों !

यह कि नाम तो होलसेल है और शहर के हर तीन सौ मीटर पर सड़कों को पाटे हुये इसके होर्डींग चीख-चीख कर इसके " केवल व्यापारियों के लिये " होने की घॊषणा करते हैं । पर हकीकत वहाँ मौजूद छोटे-छोटे बच्चों और सजी - धजी, गहनों से लकदक महिलाओं को देखकर कोई भी समझ सकता है कि चोर दरवाजे से बहुत से दैनिक उपभोक्ता भी अन्दर प्रवेश पा चुकें हैं । जो कि एक बाटल टमाटो सास और दो मैगी की मात्रा में "होलसेल" खरीददारी कर रहे थे । और भविष्य में ऐसे लोगों की संख्या बढने वाली है । क्योंकि जब बाजार में आलू दस रुपये से कम न हो और उस स्टोर में पाँच रुपये पैंतालीस पैसे में मिल रहा हो तो कौन नहीं ’होलसेलर’बन कर खरीददारी करना चाहेगा ।

वैसे एक और प्रभाव जो कालान्तर में दिखायी देगा वो यह है कि वास्तव में छोटे व्यापारियों को अपने दुकानों के लिये वस्तुएं खरीदने में बहुत सुविधा होगी । मौजूदा होलसेल बाजार में छोटे व्यापारियों को Touch & Feel का सुख नहीं मिलता - जोकि यह स्टॊर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराता है ।

मेरी उलझन !

आज दीपावली के बाद का दिन है । आज गोवर्धन पूजा का दिन है । लखनऊ की स्थानीय भाषा में इसे जमघट भी कहते हैं । यह दिन आम तौर पर पड़ेवा के नाम से भी प्रचलित है । पुराने लखनऊ के लोग आज के दिन को कनकउआ (पतंग) के पेंच लड़ा कर मनाने के लिये पूरे साल भर इंतजार करते हैं । यह मूलत: छुट्टी का दिन है । साल भर काम की रेलम - पेल के बाद राहत के कुछ पल स्वत: ही जीवन में प्रवेश करते दिखतें हैं । और वो भी इतने बेहतर तरीके से और इतने मुफीद मौके पर । वाह !

व्यापारी परिवारों में इस दिन कारोबार बंद रहता है । या एक प्रकार से वर्जित होता है । हर वर्ष की भांति आज सुबह - सवेरे ही माँ ने हिदायत दे डाली की आज "लिखा - पढ़ी का कोई काम न करना ।" ऐसा शायद इसलिये की साल - भर कलम चलाने के बाद एक दिन चित्रगुप्त जी भगवान ने अपने लिये भी छुट्टी मांगी होगी । कायस्थ बन्धु आज के दिन कलम - दवात की पूजा करतें हैं

पर मेरी उलझन यह है कि कागज-कलम का प्रयोग तो हो नहीं रहा । पर जब मैं यह पोस्ट फेसबुक पर लिख रहा हूँ तो क्या इस नियम / वर्जना का उल्लघंन होगा ? क्या माँ और चित्रगुप्त जी महाराज नाराज तो नहीं हो जायेंगें ?

कॊई मदद करेगा क्या ?

2011-10-21

परिवर्तन 20 - 20.

अभी - अभी - वि.वि. के निकट स्थापित मिश्रा जी के ढाबे से खाना खा के लौटा हुँ । इस ढाबे को मैं प्यार से "होटल मिश्रा इण्टरनेशनल" कहता हूँ । विगत कुछ वर्षों में वि.वि. के आस-पास के वातावरण को समझने में इन्ही मिश्रा जी का बहुत योगदान रहा है । यहाँ की समाजिक व्यवस्था को समझने में भी इनका सहयोग रहा है। आज इनकी व्यथा उमड़ पड़ी कि हमारा शासक वर्ग निरंकुश होता जा रहा है । "हर पाँच साल बाद सांसद जी / विधायक जी का दो बीगहे का मकान बन जाता है ।" गोरे के शासन से ज्यादा खतरनाक हैं ये काले । इनको हम डण्डा लेकर भगा भी नहीं सकते ।

मेरी टिपण्णी : यदि आजादी के 64 साल बाद जनता ये बात करना शुरू कर रही है तो शायद अगले दस - बीस सालों में हमारे माननीयों का वही हष्र हो जो कि गद्दाफी साहब का हुआ। सड़क पर सरेराह गोली मार दी जायेगी । परिवर्तन की बयार बहनी शुरू हो गयी है । जो हवा का रुख नहीं पहचानेंगे वो मिट जायेंगें ।

परिवर्तन : 20 - 20 Chetan Bhagat के नये उपन्यास का सबब भी कुछ इसी तर्ज पर है ।

आसरा !

जब डुबने लगे जहाज ,
तो कश्तियों का आसरा क्या होगा ?

हर पल बेपर्दा हो रहे रहनुमा,
अब आवामों का आसरा क्या होगा ?

रहनुमाई हुयी बेहयायी, बेहयायी बनती जा रही खुदाई,
या खुदा !
अब इन्सानों का आसरा क्या होगा ।
अब इन्सानों का आसरा क्या होगा ?

(जौनपुर, 21.10.2011)

 

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